राम (रामचन्द्र), प्राचीन भारत में जन्मे, एक महापुरुष थे। हिन्दू धर्म में, राम, विष्णु के १० अवतारों में से सातवां हैं। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम, महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित, संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में लिखा गया है| उन पर तुलसीदास ने भी भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस रचा था | खास तौर पर उत्तर भारत में राम बहुत अधिक पूजनीय माने जाते हैं । रामचन्द्र हिन्दुत्ववादियों के भी आदर्श पुरुष हैं ।
राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बडे पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था (जो लक्ष्मी का अवतार मानी जाती है) और इनके तीन भाई थे, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान, भगवान राम के, सबसे बडे भक्त माने जाते है। राम ने राक्षस जाति के राजा रावण का वध किया|
हिन्दू धर्म के कई त्यौहार, जैसे दशहरा और दीपावली, राम की जीवन-कथा से जुडे हुए है।
अनुक्रम [छुपाएँ]
1 राम के जीवन की प्रमुख घटनाएँ
1.1 वनवास
1.2 सीता का हरण
1.3 रावण का वध
1.4 अयोध्या वापसी
2 बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]राम के जीवन की प्रमुख घटनाएँ
जन्म बचपन और सीता-स्वयंवर राम का जन्म प्राचीन भारत में हुआ था। उनके जन्म के समय का अनुमान सही से नही लगाया जा सका है परन्तु विशेषज्ञों का मानना है कि उसके पीछे युक्ति यह है कि बौद्ध धर्म के बारे में मौन है यद्यपि उसमें जैन,शैव,पाशुपत आदि अन्य परम्पराओं का वर्णन है। राम का जन्म तकरीबन आज से ९,००० वर्ष (७३२३ ईसा पूर्व) हुआ था।[कृपया उद्धरण जोड़ें] आज के युग मे राम का जन्म, रामनवमी के रुप में मनाया जाता है। राम चार भाईयों में से सबसे बड़े थे, इनके भाइयों के नाम लक्ष्मण (भगवान शेषनागजी के अवतार माने जाते है), भरत (भगवान ब्रह्मा जी के अवतार माने जाते है) और शत्रुघ्न (भगवान शिवजी के अवतार माने जाते है) थे। राम बचपन से ही शान्त स्वाभाव के वीर पुरूष थे । उन्होने मर्यादाओं को हमेशा सर्वोच्च स्थान दिया था । इसी कारण उन्हे मर्यादा पुरूषोत्तम राम के नाम से जाना जाता है । उनका राज्य न्यायप्रिय और खुशहाल माना जाता था। इसलिए भारत में जब भी सुराज की बात होती है, रामराज या रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है । धर्म के मार्ग पर चलने वाले राम ने अपने तीनो भाइयों के साथ गुरू वशिष्ठ से शिक्षा प्राप्त की । किशोरवय में विश्वामित्र उन्हे वन में राक्षसों द्वारा मचाए जा रहे उत्पात को समाप्त करने के लिए ले गये। राम के साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी इस काम में उनके साथ थे। ताड़का नामक राक्षसी बक्सर (बिहार) मे रहती थी।[कृपया उद्धरण जोड़ें] वहीं पर उसका वध हुआ। राम ने उस समय ताड़का नामक राक्षसी को मारा तथा मारीच को पलायन के लिए मजबूर किया । इस दौरान ही विश्वामित्र उन्हें मिथिला ले गये। वहाँ के विदेह राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए एक समारोह आयोजित किया था । शिव का एक धनुष था जिसकी प्रत्यंचा चढ़ाने वाले शूर से सीता का विवाह किया जाना था । बहुत सारे राजा महाराजा उस समारोह में पधारे थे । बहुत से राजाओं के प्रयत्न के बाद भी जब धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर धनुष उठा तक नहीं सके, तब विश्वामित्र की आज्ञा पाकर राम ने धनुष उठा कर प्रत्यंचा चढ़ाने की प्रयत्न की । उनकी प्रत्यंचा चढाने की प्रयत्न में वह महान धुनुष घोर ध्वनि करते हुए टूट गया । महर्षि परशुराम ने जब इस घोर ध्वनि सुना तो वहाँ आगये और अपने गुरू (शिव) का धनुष टूटनें पर रोष व्यक्त करने लगे । लक्ष्मण उग्र स्वाभाव के थे । उनका विवाद परशुराम से हुआ । तब राम ने बीच-बचाव किया । इस प्रकार सीता का विवाह राम से हुआ और परशुराम सहित समस्त लोगो ने आशीर्वाद दिया । अयोद्या में राम सीता सुखपूर्वक रहने लगे । लोग राम को बहुत चाहते थे । उनकी मृदुल, जनसेवायुक्त भावना और न्यायप्रियता के कारण उनकी विशेष लोकप्रियता थी । राजा दशरथ वानप्रस्थ की ओर अग्रसर हो रहे थे । अत: उन्होने राज्यभार राम को सौंपनें का सोचा । जनता में भी सुखद लहर दौड़ गई की उनके प्रिय राजा उनके प्रिय राजकुमार को राजा नियुक्त करनेवाले हैं । उस समय राम के अन्य दो भाई भरत और शत्रुघ्न अपने ननिहाल कैकेय गए हुए थे । कैकेयी की दासी मंथरा ने कैकेयी को भरमाया कि राजा तुम्हारे साथ गलत कर रहें है । तुम राजा की प्रिय रानी हो तो तुम्हारी संतान को राजा बनना चाहिए पर राजा दशरथ राम को राजा बनाना चाहते हैं ।
राम के बचपन की विस्तार-पूर्वक विवरण स्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस के बालकाण्ड से मिलती है।
]वनवास
राजा दशरथ के तीन रानियाँ थीं: कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी। राम कौशल्या के पुत्र थे, सुमित्रा के दो पुत्र, लक्ष्मण और शत्रुघ्न थे और कैकेयी के पुत्र भरत थे। कैकेयी चाहती थी उनके पु्त्र भरत राजा बनें, इसलिए उन्होने राजा दशरथ द्वरा राम को १४ वर्ष का वनवास दिलाया। राम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया। राम की पत्नी सीता, और उनके भाई लक्ष्मण भी वनवास गये थे।
[संपादित करें]सीता का हरण
राम एवं सुग्रीव की भेंट।
वनवास के समय, रावण ने सीता का हरण किया था। रावण एक राक्षस तथा लंका का राजा था। रामायण के अनुसार, सीता और लक्ष्मण कुटिया में अकेले थे तब एक हिरण की वाणी सुनकर सीता परेशान हो गयी। वह हिरण रावण का मामा मारीच था| उसने रावण के कहने पर सुनहरे हिरण का रूप बनाया| सीता उसे देख कर मोहित हो गई और श्रीराम से उस हिरण का शिकार करने का अनुरोध किया| श्रीराम अपनी भार्या की इच्छा पूरी करने चल पडे और लक्ष्मण से सीता की रक्षा करने को कहा| मारीच श्रीराम को बहुत दूर ले गया| मौका मिलते ही श्रीराम ने तीर चलाया और हिरण बने मारीच का वध किया| मरते मरते मारीच ने ज़ोर से "हे सीता ! हे लक्ष्मण" की आवाज़ लगायी| उस आवाज़ को सुन सीता चिन्तित हो गयीं और उन्होंने लक्ष्मण को श्रीराम के पास जाने को कहा| लक्ष्मण जाना नहीं चाहते थे, पर अपनी भाभी की बात को इंकार न कर सके| लक्ष्मण ने जाने से पहले एक रेखा खीची, जो लक्ष्मण रेखा के नाम से प्रसिद्ध है।
राम, अपने भाई लक्ष्मण के साथ सीता की खोज मे दर-दर भटक रहे थे। तब वे हनुमान और सुग्रीव नामक दो वानरों से मिले। हनुमान, राम के सबसे बडे भक्त बने।
[संपादित करें]रावण का वध
भवानराव बाळासाहेब पंतप्रतिनिधी कृत रावण-वध।
सीता को को वापिस प्राप्त करने के लिए भगवन राम ने हनुमान और वानर सेना की मदद से रावन के सभी बंधू-बांधवो और उसके वंशजोँ को पराजित किया था ।
[संपादित करें]अयोध्या वापसी
अयोध्या-वापसी।
भगवान राम ने जब रावण को युद्ध में परास्त किया और उसके छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया। राम, सीता, लक्षमण और कुछ वानर जन पुष्पक विमान से अयोध्या कि ओर प्रस्थान किया| वहां सबसे मिलने के बाद राम और सीता का अयोध्या मे राज्याभिषेक हुआ| पूरा राज्य कुशल समय व्यतीत करने लगा।
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